कई बार कुछ किताबों में समाए ज्ञान(?) को पढ़ कर तो कई बार कुछ लेखकों का लिखा पढ़ कर आप उनका इम्तिहान लेते हैं या लेने की सोचते हैं कि बंदे ने आखिर इसमें क्या और कैसा लिखा है? मगर कई बार इस प्रकार की स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन करते हुए आपके समक्ष कोई ऐसी विकट स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है कि कोई किताब आपके सामने ही अपनी छाती चौड़ी कर के खड़ी हो जाती है कि..."ले!...बेट्टे... है हिम्मत तो अब तू मुझे पढ़ के दिखा।" चलो!...आप या मुझ जैसे कुछ लोग जैसे तैसे..मन मसोस कर इसे कैसे ना