नई चेतना - 25

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अमर बड़ी देर तक सिसकता रहा । काफी सोच विचार के बाद भी वह किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा था । बाबू भी ऊपर से तो सख्त दिखने का प्रयास कर रहा था , लेकिन अन्दर ही अन्दर उसकी आत्मा भी रो रही थी । वह अपने आपको अमर और धनिया की खुशियों पर डाका डालनेवाला गुनहगार समझ रहा था ।कितना मजबूर पा रहा था वह खुद को ! वह मजबूर था लालाजी को दिए वचन की वजह से ! उसे पूरा यकीन था धनिया की तरफ से नाउम्मीद होते ही अमर वापस अपने घर लौट जायेगा ।