बागी आत्मा 14

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बागी आत्मा 14 चौदह सीमायें सुख देती हैं। सुख देने के लिए निर्धारित की जाती हैं। गरीबी और अमीरी की भी सीमा होती है। गरीबी सीमा से नीचे सोचनीय विशय बन जाती है। इसी प्रकार अमीरी सीमा से ऊपर अमीरी भी सोचने का विशय है। कहीं अमृत लुट रहा है, कहीं जहर दिया जा रहा है। एक ओर आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आदमी का प्रयत्न दूसरी ओर ऐशो आराम के लिए तड़फन। दोनों की संवेदनाओं में फर्क है। यही सब सोचते हुए माधव और उदय बीहड़ों में बढ़ते चले जा रहे थे। दोनों खुश थे।