ये कैसी राह - 17

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अगले अवकाश में दोनो परिवार इकट्ठा हुए। फिर कुल पुरोहित को बुला कर शुभ मुहूर्त निकलवाया गया। तीन महीने बाद की शादी की तारीख निकाली गई थी। बेहद शुभ मुहूर्त था। मां भी गांव से आ गई थी। उनके निर्देश अनुसार ही सब कुछ हो रहा था। मां सारी रीति रिवाजों और परम्पराओं के साथ दोनों पोतियों का ब्याह करना चाहती थी। जवाहर जी और रत्ना बिल्कुल भी आर्थिक बोझ नहीं डालना चाहते थे अरविंद और सावित्री के उपर। वे सारी व्यवस्था खुद ही करना चाहते थे, ये कह कर की,