उलझन डॉ. अमिता दुबे सत्रह जज महोदया ने निर्णय अंशिका पर छोड़ा। उन्होंने दोनों के सामने ही उससे पूछा - ‘बेटा ! क्या तुम अपने पापा के साथ एक सप्ताह के लिए जाना चाहती हो।’ ‘जी, केवल एक सप्ताह के लिए ही नहीं पूरी जिन्दगी के लिए।’ अंशिका का स्वर स्थिर था। मम्मी अवाक् रह गयीं। एक क्षण के लिए उनके मुँह से कोई भी शब्द नहीं निकला। उन्हें ऐसा लगा जैसे वे मुकदमा हार गयीं। जज की कुर्सी पर बिना बैठे अंशिका ने ही फैसला सुना दिया। उनकी सारी लड़ाई बेकार हुई। उनका और उनके वकील का विचार था