गवाक्ष 44 एक अजीबोगरीब मनोदशा में कॉस्मॉस ने आत्मा को प्रणाम किया, न जाने किस संवेदना के वशीभूत हो सत्यप्रिय ने उसके माथे पर अदृश्य चुंबन अंकित किया और पवन-गति से सब तितर-बितर हो गया। सत्यव्रत ने अंत:करण से सबको नमन किया तथा पृथ्वी से सदा के लिए विदा ली। एक सूक्ष्म पल के लिए पुष्पों से लदी उनकी पार्थिव देह में जैसे कंपन सा हुआ जिसको केवल ज्ञानी प्रो.श्रेष्ठी तथा कॉस्मॉस समझ सके। परम प्रिय मित्र की बिदाई की अनुभूति से प्रो.पुन:लड़खड़ा से गए, उन्हें पास खड़ी भक्ति ने संभाल लिया। मीडिया को न किसी से सहानुभूति थी, न ही किसी के जाने की पीड़ा । उसे