उजाले की ओर - 10

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उजाले की ओर --10 ------------------------ आ.एवं स्नेही मित्रो नमस्कार एक नवीन दिवस का आरंभ ,एक नवीन चिंतन का उदय हमें परमपिता को प्रत्येक पल धन्यवाद अर्पित करने का अवसर प्रदान करता है |हम करते भी हैं ,कितना कुछ प्रदान किया है उसने जिसने ज़िन्दगी जैसी अनमोल यात्रा का अनुभव कराया है |लेकिन हम कहीं न कहीं चूक जाते हैं ,हम अपने वर्तमान में रहकर भी वर्तमान में नहीं रह पाते |हम वर्तमान में रहकर भी न जाने कहाँ कहाँ भटकते रहते हैं |यह मस्तिष्क का स्वभाव है ,वह कभी शांत तथा स्थिर नहीं रह पाता | जीवन में