स्वतंत्र सक्सेना-सरल नहीं था यह काम

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समीक्षा के आईने में ’’सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं’’ समीक्षक - वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’तटस्थ नीति के अध्येता ,चिंतन के सहपाठी और ईमानदारी की जमीन को तराशने में हमेशा निरत ,स्वतंत्र कुमार जी- जब अपनी रचना धर्मिता की परिधि में अपनी प्रथम प्रकाशित काव्य कृति -‘‘सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं ’’में अपनी भाव व्यत्र्जना देते हैं तब पाठक /श्रोता का हृदय उद्वेलित हुए बिना नहीं रहता है। कविता की धारदार धारा मन के बेचैन क्रन्दन को साहस प्रदान करती दिखती है। कृति का आवरण पृष्ठ ही भावों का नया दरवाजा खोलता सा दिखता है। श्री