चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा - 4

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चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा अनुवाद एवं प्रस्तुति: सूरज प्रकाश और के पी तिवारी (4) मुझे इस बात की हैरानगी है कि कैम्ब्रिज में मैंने जितने भृंगी-कीट पकड़े, उनमें से कई ने मेरे दिमाग पर अमिट छाप छोड़ दी थी। जहाँ-जहाँ मुझे अच्छा संग्रह करने का मौका लगा उन सभी खम्भों, पुराने वृक्षों और नदी के किनारों को मैं आज भी याद कर सकता हूं। उन दिनों पेनागियस क्रुक्स मेजर नामक प्यारा भृंगी कीट एक खजाने की तरह से था, और डॉन में घूमते हुए मैंने एक भृंगी कीट देखा जो कि सड़क पर दौड़ता हुआ जा रहा था। मैंने भाग