गवाक्ष - 43

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गवाक्ष 43== मंत्री जी कॉस्मॉस के साथ वृक्ष पर बैठकर अपनी मृत्यु का तमाशा देखकर अपने बीते दिनों में पत्नी स्वाति के पास पहुँच गए थे, वे अपने पुत्रों के बारे में भी सोचते रहे थे। काश ! मेरे बेटों को भी उनकी माँ स्वाति जैसी समझदार जीवन-साथी मिल सकती ! बिटिया भक्ति में माँ की समझदारी व गुण सहज रूप से आए थे । मनुष्य-जीवन प्राप्त हुआ है तो मनुष्य की सेवा मनुष्य का धर्म है । आज की परिस्थितियों में जागृत मनुष्य के कुछ कर्तव्य बनते हैं, वह केवल अपने जीवन को ही अपना लक्ष्य समक्ष रखकर नहीं चल सकता। समाज के प्रति जागरूकता उसका दायित्व है। भक्ति स्वामी विवेकानंद के विचारों से बहुत