कहानी-- आभास आर. एन. सुनगरया आदतानुसार मैंने बाहर से आते ही टेबल पर जेबों का सामान पटकना प्रारम्भ किया, तभी टेबल पर पड़े पत्र पर मेरी नज़रें मंडराने लगीं...... प्रिय राजेन्द्र, मैं जानती हूँ तुम मुझसे नाराज हो, फिर भी तुमसे अनुरोध है-आज सुबह अस्पताल में मिलूगी, तुम्हारी सख्त जरूरत है। आना जरूर। तुम्हारी लतेश लतेश!......मुझे और अस्पताल! क्या मेरी चेतावनी सही.....! नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता, नहीं होना चाहिए। मैं एक अज्ञात अनुभूति से सिहर उठा, कॉंप उठा। जेब में हाथ गया