उजाले की ओर - 9

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उजाले की ओर--9 ------------------ स्नेही मित्रो भाषण देना जितना सरल है उसका निर्वाह करना उतना ही कठिन ! ज़िन्दगी हिचकोलों में डूबती-उतरती हुई हमें अपनी ही सोच पर चिंतन करने के लिए बाध्य करती है | वास्तव में ज़िंदगी है क्या? चार दिन की चाँदनी ? सत्य है न ?लेकिन इसी चाँदनी को पीना पड़ता है,इसीमें नहाना पड़ता है ,इसीके साथ जीना पड़ता है |फिर चाँदनी सूर्य के तेज़ में परिवर्तित हो जाती है इसमें भी मनुष्य को रहना पड़ता है,जीना पड़ता है |तात्पर्य है कि कोई भी परिस्थिति क्यों न हो ,दिन हो अथवा रात हो ,मनुष्य