गूगल बॉय - 17

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गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 17 सच तो यह है कि स्वैच्छिक रक्तदान करने से लोगों का डर निकल गया। छात्र व युवा तो इसे सम्मान का सूचक मानने लगे। अनेक छोटी-बड़ी सामाजिक संस्थाएँ जो विभिन्न प्रकार की सामाजिक सेवाएँ कर रही थीं, वे भी रक्तदान शिविर आयोजित करने लगीं। किस संस्था ने कितने रक्तदान शिविर लगाये और कितना रक्त एकत्रित किया...आपस में स्पर्धा का विषय बन गया। रक्तदानी संस्थाओं और अधिक बार रक्तदान करने वाले युवकों को बार-बार सम्मानित किया जाने लगा। स्वैच्छिक रक्तदान करना और कराना एक आन्दोलन बन गया। गूगल का पुराना