गिद्ध भोज गोविंद ने अपने पास लगी कनात के बाहर झांका तो उसे मेले की तरह टूट पड़ती खूब भीड़ दिखी। सजे धजे शामियाने, रंगबिरंगी झिलमिलाती रोशनी और चहल-पहल देखकर ऐसा जान पड़ता था कि-कोई मेला लगा है। विवाह पाण्डाल की साज सज्जा और रईसी ठाट-बाट देखते ही बनते थे। कुछ लोग अपनी-अपनी गाड़ियाँ ठीक स्थान देखकर खड़ी करके मुख्य द्वार की ओर जा रहे थे, तो कुछ ग्रामीण लोग ठट्ठ के ठट्ठ पांण्डाल में घुसे चले जा रहे थे। एक बड़े क्रिकेट मैदान से भी बड़ा था वह पाण्डाल जिसमंे एक ही समय में दस हजार से ज्यादा लोग