उसका देखा सुनहरा सपना भी आज टूट गया था।काफी दिनों से सजोये सपने के टूटने से वह हताश था और हारे हुए जुआरी की तरह ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन लौट रहा था।उसे दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़नी थी।अचानक सामने नज़र पड़ते ही वह ठिठक कर खड़ा रह गया।दूर खम्बे के सहारे कोई औरत खड़ी थी।इतनी रात गए सुनसान जगह में एक औरत को देखकर वह चोंका था।कौन है,वह?यहाँ क्यो खड़ी है?उस औरत को देखकर उसके मन मे अनेक प्रश्न उभरे थे।जिनका उत्तर वह औरत ही दे सकती थी।कुछ देर तक वह उस औरत के बारे में सोचता रहा।फिर कुछ