कोख समता उठी तो दिन कुछ ज्यादा ही चढ़ आया था। सास नयनादेवी रसोई की तरफ जा रही थी। समता ने जल्दी से उनके पैर छुए। नयनादेवी ने अपनी भृकुटी केा तनिक ढीला छोड़ते हुए धीरे-धीरे बुदबुदाना शुरू किया - ‘‘पुत्रवती भव , सौभाग्यवती भव ।’’ फिर उसने बढ़कर जेठानी के पैर छुए। उन्होनें भी आशीर्वाद दिया - ‘‘ दूधो नहाओ पूतो फलो ।’’ समता धीरे से बोली -‘‘दीदी आज मुझे रसोई में नहीं जाना है’’ यह वाक्य सुनते ही नयनादेवी के कदम ठिठक गये वे कुछ तल्ख आवाज में बोली - ‘‘ तुम्हारे साथ ही अरविंद के दोस्त