लमछड़ी आज डॉक्टर बताते हैं पचास के दशक में आएसौनियज़ेड के हुए अविष्कार के साथ तपेदिक का इलाज सम्भव तथा सुगम हो गया है| किन्तु सन् छप्पन की उस जनवरी में जब डॉक्टर ने उनकी पत्नी के रोग का नाम तपेदिक बताया तो वे चकरा गए| अपने देश के डॉक्टरों के पास वह चमत्कारिक औषधि अभी न पहुँची थी| उनके कस्बापुर के डॉक्टर तक तो कदापि नहीं| अपने पिता की असामयिक मृत्यु का शोक उन्होंने दोबारा मनाया| यदि उस समय उनके पिता जीवित रहे होते तो तत्काल अपने समधी को बुलाते और उस लमछड़ी को उसके संग विदा कर देते,