गुजराती हिन्दी की भाषाई नोंक झोंक संस्मरण-4 ढाबा गुजरात में रहकर गुजराती के नए शब्दों को जानने में बडा़ मज़ा आ रहा था. विशेष कर ऐसे चिर परिचित शब्दों के गुजराती में अर्थ. गुजराती भाषा से अनभिज्ञ होने के कारण कभी अर्थ का अनर्थ भी हो जाता था, लेकिन वह भी गुदगुदा जाता और बहुत देर तक हँसी के फव्वारे छूटते रहते. आज भी वही अनुभूति हो रही है लिखते समय. अक्सर घर के कामकाज मैं भूल ही जाती थी कि मैं कि अहमदाबाद में रह रही हूँ. एक संध्या की बात है, मैं थोड़ा निश्चिंत होकर चाय