स्टेशन से थोड़ा हटकर अचानक उसने लपक कर अर्थी को हाथ बढ़ा कर रोक लिया था. गरीब परिवार के जवान बेटे की अर्थी थी. सो प्रियजन रोते-कलपते, छाती पीटते उसे श्मशान तक लिए जा रहे थे.उसने उन्हें रोकते हुए कहा था, ‘‘ यह असमय हुई मृत्यु है, इसकी मौत अभी नहीं होनी चाहिए थी. ले चलो इसे उस मैदान में, मैं इसके प्राण लौटाऊंगा.’’‘‘ कौन हो तुम?’’ अर्थी पर कंधा देने वालों में से एक ने पूछा.‘‘ मैं भंभेरा हूं वाऊजी! हर जहर का इलाज है मेरे पास. भूत-चुड़ैल और जिन्न मुझसे घबराते हैं. वाऊजी! जल्दी करो.’’भंभेरे का काला चटक