दीदी

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दीदी सुगंधा ट्रेन में बैठी हुई रास्ते के दृश्य देख रही थी । वह सोच रही थी कि घर पर सभी उसका इंन्तजार कर रहें होगे -- मम्मी-पापा , भैया-भाभी एवं उनके बच्चे । उसने घड़ी पर नजर डाली तीन बज रहे थे। अब तक तो दीदी पहुँच गयी होगीं । दीदी की याद आते ही उसे बचपन की यादें आने लगी। कितने अच्छे दिन थे । खूब सारे खेल खेला करते थे । कभी आइसपाइस, कभी किलकिल कांटे, कभी इक्कल-दुक्कल तो कभी सितौलिया।कभी पचकुट्टे खेलते तो कभी अश्टा चंगा पौ । कुछ नहीं मिलता तो चोर -सिपाही ,