अपने-अपने इन्द्रधनुष (9) ’’ मुझे यह भी आभास हो चुका था कि वह विक्रान्त नही कोई और है, क्यों कि विक्रान्त जैसा व्यक्ति तुम्हारी पसन्द हो ही नही सकता। थोड़े से यत्न द्वारा मैंने यह जान लिया कि वह स्वप्निल है। ’’ चन्द्रकान्ता की बातें सुन कर मैं मुस्करा पड़ी। ’’ कैसे? किस प्रकार का यत्न? ’’ मैंने पूछा। ’’ कुछ विशेष नही । ’’ चन्द्रकान्ता ने कहा। ’’ मुझे कुछ-कुछ आभास हो गया था कि वह सौभाग्यशाली विक्रान्त नही कोई और है। किन्तु कौन? यह जानना कठिन न था मेरे लिए। स्वप्निल को ढूँढती तुम्हारी आँखों ने स्वतः सब