बात बस इतनी सी थी - 16

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बात बस इतनी सी थी 16. अगले दिन मेरी माता जी गाँव में चली गई । गाँव में हमारा पैतृक घर था, जिसमें मेरे एक ताऊ जी रहते थे । माता जी को स्टेशन पर छोड़ने के बाद मैं घर वापिस लौटा, तो उनकी अनुपस्थिति में मुझे वह घर बिल्कुल वीरान खंडहर-सा लग रहा था । यह सोच-सोचकर कि आज तक मैं अपनी माँ को दुःख और अपमान के सिवा कुछ नहीं दे सका, मैं ग्लानि में डूबकर अंदर ही अंदर कहीं गलने और टूटने लगा था । लेकिन इस दलदल से निकलने का मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा