चार चतुर की बेकार कथा वे चार थे। चारों बेकार थे। पहिले वे ऐसे नहीं थे। बचपन से ही सबके अपने कारोबार थे, जहाँ कहीं कभी कोई ना तो फिक्र थी और ना ही चिन्ता। एक साथ रहते थे। शुरूआती दिनों की बात थी। उनमें से एक कविता लिखने की धुन में रहता था। दूसरा कागज पर रंगों से खेलता। तीसरा अपनी आवाज को अंतरिक्ष तक उठाकर स्वरों में खो रहा था। चौथा नृत्य की लयात्मक मुद्राओं में अपना वजूद भूलने की हद पर था। अपने काम में मस्त और शौक में मुब्तिला, वे सभी बेपरवाह और मनमौजी थे। उन