पहला कदम पवित्रा अग्रवाल आज बुआ फिर आई थीं. बुझा बुझा सा मन, शिथिल सा तन, भावहीन चेहरा देख कर मैं दुखी हो जाती हूँ. जब फूफाजी जीवित थे, एक स्निग्ध सी मुस्कराहट बुआ के व्यक्तित्व का हिस्सा थी. हर समय मैं ने उन्हें खुश देखा था. बीमारी में भी उन्हें कभी मुह लटकाये या हाय हाय करते नहीं देखा था. एक मेरी माँ हैं हर समय खीजती, झुंझलाती रहती हैं जैसे उनसा दुखी इन्सान कोई दूसरा नहीं. ज़माने भर के सारे गम भगवान ने जैसे उनकी झोली में ही डाल दिए हों. पर बुआ अपने जीवन में बड़ी संतुष्ट