पेड़ गायब

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अनिल जायसवालरोज का तरह अंशु स्कूल जाने के लिए मुंह अंधेरे उठा। उसके पिता लकड़ी के बड़े व्यापारी थे। बड़ा-सा बंगला था। उसके चारों तरफ हरियाली थी। अंशु की आदत थी, रोज सुबह उठकर बगीचे में जाना और पक्षियों को दाना चुगाना। हरे-भरे पेड़ों पर बैठे पक्षी उसका इंतजार करते। पर आज तो गजब हो गया। अंशु जैसे ही घर से निकलकर बगीचे में गया, उसकी चीख निकल गई, ‘‘पापा पेड़, पापा पेड़।”अंशु के पापा गोपालदास सो रहे थे। बेटे की चीख सुनकर दौड़े। बाहर पहुंचकर देखा, अंशु बदहवास सा खड़ा है। ‘‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो? ” गोपाल अनमने से