हर कहानी की किस्मत में एक अदद शुरुआत और मुकम्मल अंत नहीं होता। कुछ वृत में तरह घूमते रहने को अभिशप्त भी होती हैं। छोटे शहर के अनाम मुहल्ले में जब हम बड़े हो रहे होते हैं तो अक्सर एक वर्जित घर होता है जिस ओर नज़र उठाने की भी सख्त मनाही होती है। ये कहानी नज़र बचाकर उस वर्जित कोने की दरारों में झांक पाने की गुस्ताखी और उसकी स्मृतियों के अवशेष पर शब्दों को खड़ा करने की कोशिश है। पटना से चिट्ठी आई ‘पटना से चिट्ठी आई रस्ते में गिर गई, कोई देखा है’, ‘नाहीं’ ‘पटना से चिट्ठी