छठी गाड़ी अभी बालामऊ में ही थी जब माँ ने सीट के नीचे से सारा सामान निकालकर हमें सब समझा दिया- दोनों थैले सुमन के जिम्मे रहेंगे और खाने की टोकरी के साथ पानी का डिब्बा सुरेश के| लोहे का नया बक्सा घसीट कर डिब्बे के दरवाजे तक मुझे ले जाना था जबकि नए सूटकेस को अपनी निगरानी में मेरी मदद लेकर माँ खुद नीचे उतर लेंगी| हम लोग जब भी धामपुर से लखनऊ लौटते यों ही लदे-लदे लौटते| उधर धामपुर में हमारे नाना के पास आटे की बहुत बड़ी चक्की थी| चार बेटे और बारह पोते-पोतियाँ थीं| सभी की