नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’ और छायावाद

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ऽ सम सामयिक परिवेश ऽ उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों और बीसवीं शताब्दी के प्रथमार्द्ध की परिस्थितियाँ भारतीय जिजीविषा का इतिहास हैं। राजनीतिक आकाश में राष्ट्रीयता की भावना के ऐसे बादल घिरे जिनकी वर्षा से सम्पूर्ण राष्ट्र आप्यायित हो गया। उसके प्रवाह-वेग में विदेशी शासन निर्मूल होकर बह गया। इस काल में देश को नवीन अभिव्यक्ति मिली। ’मुधु’ के काव्य में समसामयिक परिवेश की प्रेरणा और उसका परिपाक स्पष्ट परिलक्षित होता है। ऽ राजनीतिक परिवेशः- भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व के सौ वर्ष परतंत्रता की पीड़ा के अनुभव और खोयी हुई आजादी की तलाश की चेतना के वर्ष