मुक्ति-धाम कहते हैं, एक बार मुक्ति ने भगवान से प्रार्थना करते हुए प्रश्न किया कि ‘ हे गोपाल! हे कृष्ण ! मैं सबको मुक्ति दिलाती हूँ, लेकिन मेरी मुक्ति का कोई उपाय बताओ । भगवान ने कहा, ‘ मुक्ति! वृन्दावन की गलियों में पड़ी रहो, वहाँ से जो साधु सन्त जायेंगे, उनके चरणों की रज- कण से ही तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी। ‘ पड़ी रहो या गैल में, साधु सन्त चली जाहैं उड़ी उड़ी रच मस्तक लगे, सहज मुक्ति हो जाये’ धुँधली होती हुई दृष्टि से, अपनी पलकों पर हथेली का छाता सा बनाते हुए, निस्तेज आँखों से अस्सी साल