दास्तानगो - 3

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दास्तानगो प्रियंवद ३ जब दरवाजे पर दस्तक हुयी शाम का धुंधलका शुरू हो गया था। द्घर इतना बड़ा और खुला हुआ था कि दरवाजे की दस्तक पत्तियों के गिरने या लहरों के शोर में खो जाती थी। आने वाला किसी और तरह से उन्हें बुला सके, इस पर उन दोनों ने कभी नहीं सोचा, क्योंकि