बड़े बाबू का प्यार - भाग 7 14: तब भी था...आज भी..

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भाग 7/14: तब भी था...आज भी..बातों –बातों में कब नींद लग गई पता ही न चला....छह –सात ग्लास का सुरूर कम होता है क्या? कंडक्टर ने जब पाली उतरने की आवाज़ लगाई तब जा कर कहीं नींद खुली|ठंडक का दिन और भोर के पांच बजे का समय, दिवाकर का मन तो किया कि एक सिगरेट और चाय पी ली जाए पर मंदार के पैरों में तो मानों मोटर फिट हो गई हो, चाह रहा था बस कैसे भी कर के ससुराल पहुँच जाए और अपनी बीवी से मिल ले|पिछली रात इतने नशे में भी मंदार का दिमाग अच्छा चला था,