कम्युनिस्ट

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कम्युनिस्ट राजा सिंह प्रवेश जब इस कस्बे में आया था, उसे अच्छा नहीं लगा था. वह महानगरीय जिंदगी जीने का अभ्यस्त, यह जिंदगी ठहरी ठहरी सी एकांत बोझिल और उकताई लगी. कुछ नया, रोचक और अच्छे की तलाश में वह कस्बे के हर गली में घुमा फिरा था. शायद ही कोई गली बची हो जहाँ वह न गया हो. वह हर जगह धूमता था, इसलिए नहीं की उसे घूमना बहुत पसंद था बल्कि एक कारण और था, वह यहाँ की सम्पन्नता का भी राज जानना चाहता था. ऐसा क्या है जो इसे एक बड़े शहर के संपन्न इलाके का रूप