गूगल बॉय - 7

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गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 7 पन्द्रह दिन के अवसाद के बाद घर की दिनचर्या पटरी पर लौटने लगी। गूगल ने दुकान का काम सँभाल लिया। जब वह सामान ख़रीदने शहर जाता तो नारायणी भी दुकान में आकर सामान बेच देती। माँ को संतोष था कि गूगल भी अपने पापा की भाँति घर की सब आवश्यकताओं का ध्यान रखने लगा है। उसे लगता, पिछले पन्द्रह दिनों में गूगल के शरीर में उसके पापा ने वास कर लिया है। कभी-कभी नारायणी सोचती, बालक तभी तक बच्चे रहते हैं, जब तक उनपर ज़िम्मेदारी नहीं पड़ती। ईश्वर इंसान