कहानी संग्रह पिताजी चुप रहते हैं: ज्ञानप्रकाश विवेक कविता का मजा देती कहानियाँ कुछ आलोचक जो कविता और कहानी में गलत फहमिया पैदा करके दोनों की भाषा , शिल्प, विशय वैविध्य आदि के आधार पर कहानी में संवेदना और उसकी भाषा के प्रति असंतुश्टि जाहिर कर रहे हैं, उनका कहना है कि “आज की कहानी की भाषा मृत है“ सपाट बयानी है उसमें और व्यर्थ की विवरणात्मक व इकहरापन भी मौजूद है। कहानी के लेखक, कवियों की तरह भाषा पर मेहनत नहीं कर रहें है। और सीधी-सीधी घटनाओं का चरित्रों के करछुल से परोस रहे है। दरअसल