राम रचि राखा (5) पंद्रह दिनों बाद जब मुन्नर जेल से छूटे तो उनकी हालत किसी मानसिक रोगी जैसी थी। मन में अनिश्चितता ने घर कर लिया था। कुछ भी निर्णय कर पाने की शक्ति खो चुके थे। कहाँ जाऊँ ? क्या करुँ ? कुछ भी नहीं तय कर पा रहे थे। पैदल चलकर स्टेशन तक पहुँचे और प्लेटफोर्म की एक बेंच पर बैठ गए। आने जाने वाली गाड़ियों को निर्विकार रूप से देखने लगे। बदन पर वही पंद्रह दिन पुरानी लुंगी और कुर्ता था, जो बहुत ही मैला हो चुका था। गाड़ियों के आवागमन की उद्घोषणा और लोगों का