अरक्षित

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अरक्षित उनका घर इन-बिन वैसा ही रहा जैसा मैंने कल्पना में उकेर रखा था| स्थायी, स्वागत-मुद्रा के साथ घनी, विपुल वनस्पति; ऊँची, लाल दीवारों व पर्देदार खुली खिड़कियाँ लिए वह बँगला पूरी सड़क को सुशोभित कर रहा था| “साहब घर पर नहीं है,” अभी हम पहले फाटक पर ही थे, कि एक साथ चार संतरियों ने अपनी बंदूकें अपने कंधों पर तान लीं| “हम तुम्हारे साहब से नहीं, तुम्हारी मेम साहब से मिलने आए हैं,” मैं अपनी पत्नी की ओट में खड़ा हो गया, “हम उनके रिश्तेदार हैं|” “क्या रिश्ता बताएँगे, हुजूर?” सभी संतरियों ने तत्काल अपनी बंदूकें अपने कंधों