अपने-अपने इन्द्रधनुष (6) काॅलेज से लौटते समय मेरी और चन्द्रकान्ता की इच्छा पुनः कुछ दूर पैदल चलने की हो रही थी। मार्ग में चलते हुए हम दोनों सायं की खुशनुमा ऋतु का आनन्द व चर्चा करते हुए चल रहे थे। मन्द-मन्द चलते शीतल हवाओं के झोकों से झूमते हुए वृक्षों के पत्ते चारों तरफ विस्तृत हरियाली सब कुछ अच्छा लग रहा था। सहसा मेरे व चन्द्रकान्ता के बढ़ते पग रूक गये। मार्ग के किनारे से कुछ दूर वृक्षों व झाड़ियों के पीछे छिपा वह जल से भरा पोखर जलकुम्भी के पुष्पों से आच्छादित हो गया था। हम प्रतिदिन इसी मार्ग