राम रचि राखा - 6 - 4

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राम रचि राखा (4) सवेरे जब मुन्नर द्वार पर नहीं दिखे तो पहले माई ने सोचा कि दिशा-फराकत के लिए गए होंगे। परन्तु जब सूरज ऊपर चढ़ने लगा फिर भी मुन्नर लौट कर नहीं आये तो माई को चिंता होने लगी। वे मैदान की तरफ से आने वाले लोगों से पूछने लगीं कि किसी ने मुन्नर को देखा है। किन्तु सभी ने अनभिज्ञता प्रकट की। अब माई का मन डूबने लगा। मन में शंका- कुशंका का ज्वार उठने लगा- कहीं घर छोड़कर चले तो नहीं गया? लेकिन जायेगा कहाँ? कहीं कुछ कर तो नहीं लिया? माई का मुँह कलेजे को