मृत्‍यु किस्‍तों में

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कहानी-- Mrreduy thatirits में आर। एन। सुनगरया '' कितना ही सोचूँ ..... पर कह नहीं पाती ..... '' '' लेकिन ...... प्रदर्शित तो मैं ही करूँगा। 'कैसे मुँह खुलेगा। ’’ '' खुल्ल! खुल्ल! खुल्ली !!! .......... हे राम ........... इस असाधारण खॉंसी ने मुझे फिर से: बुरी तरह जकड़ ली और मैं दौड़ के बाद दुबले घोड़ों की तरह हॉँकने लिया। सारा शरीर अकड़ गया। औंखों में अंधरा सिमट गया। सर चकराने लगा। और मैं हांफते-हांफते पलंग पर जिर्निव सी चिपका गया। कमरा का सन्तनाटा जैसे थर्रा गया। '' जैसे मेरा