गूगल बॉय - 2

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गूगल बॉय (रक्तदान जागृति का किशोर उपन्यास) मधुकांत खण्ड - 2 आज रविवार है अर्थात् अवकाश का दिन। छुट्टी सबको अच्छी लगती है। चाहे कितना भी कमेरा व्यक्ति हो, परन्तु छ: दिन की बंधी हुई दिनचर्या से अलग अपनी इच्छा के अनुसार उठना-बैठना, खाना-पीना और अपनी पसन्द का काम करना बहुत सुखद लगता है। गूगल भी आज बहुत खुश है। सर्वप्रथम वह पाँच बजे उठेगा। एक गिलास पानी पीयेगा, नदी के किनारे-किनारे लम्बी सैर पर जायेगा, बाबा कालीधाम आश्रम के पुल पर बैठकर अपनी बाँसुरी बजायेगा, तन-मन से प्रफुल्लित होकर घर लौट आयेगा। आज उसने मन-ही-मन एक विशेष कार्य करने