उम्मीदों का पेड़ - कोशिशें

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पौ फटने का समय दूर था, पर माधव तो तड़के चार बजे ही उठ गया था। धान की रोपाई की रुत थी, तो पंछियों के चहचहाने से पहले ही, गांव के ज्यादातर घरों के किवाड़ खुल गए थे। बिना कोई आहट किए, उसने धीरे से दरवाजा खोला, बाल्टी में रखे पानी को छपाक से चेहरे पर मारा और खेत की ओर चल दिया। शांति की नींद भी टूट गई थी, पर पिछ्ले दिन की थकान और आने वाले दिन के कामों का खयाल आते ही उसने कुछ देर और सोने का फैसला किया। चार साल हो गए थे माधव और शांति