महाकवि भवभूति 5 अपना वैभव कहती पद्मावती सूर्य के उगते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। ठीक उसी तरह जब हमारा चित्त प्रकाशित हो उठता है, तब चेतना उत्कृष्ट होकर जन-जन का उपकार करने लगती है। इस तरह जाने क्या-क्या सोचते हुये महाकवि भवभूति की पत्नी दुर्गा मछलियों को चुँगा डालने से निवृत्त होकर घर चल दीं। पथ में बबूल के पेड़ की उथली छाया में सुमंगला चीटियों को मिष्ठान से भरपूर आटा डाल रही थीं। दुर्गा पास जाकर उनका ध्यान भंग करते हुये बोली- ‘सुमंगला दीदी, आप तो प्रातः से साँय तक इसी