राम रचि राखा मुझे याद करोगे ? (2) रुचि की जब बारहवीं की परीक्षाएँ समाप्त हुई तो दीदी के यहाँ चली आई। आने के पहले बहुत उत्साहित थी, किन्तु इस छोटे से कस्बे में आकर उसका सारा उत्साह जल्दी ही समाप्त हो गया। वह बड़े शहर में पली-बढ़ी थी। पिताजी अच्छे-खासे रईस थे। वहाँ उनका काफी बड़ा बंगला था। यहाँ न तो कहीं घूमने फिरने लायक है और न ही उसकी सहेलियाँ हैं। कस्बे में कुल मिलाकर एक सिनेमाघर था जिसकी कुर्सियों पर तीन घन्टे बैठना भी अपने आप में एक कसरत थी। सारा दिन तीन कमरों के इस छोटे से