गवाक्ष - 24

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गवाक्ष 24== सत्यनिधि के पास से लौटकर कॉस्मॉस कुछ अनमना सा हो गया, संवेदनाओं के ज्वार बढ़ते ही जा रहे थे। उसके संवेदनशील मन में सागर की उत्तंग लहरों जैसी संवेदनाएं आलोड़ित हो रही थीं। जानने और समझने के बीच पृथ्वी-वासियों के इस वृत्ताकार मकड़जाल में वह फँसता ही जा रहा था। गवाक्ष में जब कभी पृथ्वी एवं धरती के निवासियों की चर्चाएं होतीं, पृथ्वी का चित्र कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता मानो पृथ्वी कारागार है और यदि कोई दूत अपनी समय-सीमा में अपना कार्य पूर्ण नहीं कर पाता तब उसको एक वर्ष तक पृथ्वी पर रहने का दंड दिया जा सकता है। इस समय अपने यान के समीप वृक्ष