यारबाज़ - 10

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यारबाज़ विक्रम सिंह (10) मैं उस शाम को अपनी प्रेमिका बबनी के आंगन के आसपास घूमने लगा अर्थात गुमटी के पास था । मैंने आज एक फिर पत्र लिखा था वह मैं बबनी को देना चाह रहा था। अचानक से बबनी आंगन में आ गई और आंगन के दरवाजे के पास बाहर आकर खड़ी हो गई मैं हर बार की तरह उसी अंदाज में उसके पास गया और उसके हाथ में पर्ची थमा दी ठीक उसी तरह उसने भी मुझे एक पर्ची थमा दी। पत्र ले मैं उसी स्थान पर चला गया जहां हर बार जाता था और पेड़ के नीचे