महाकवि भवभूति - 3

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महाकवि भवभूति 3 भवभूति उवाच जब-जब मेरा चित्त उद्धिग्न होता है, मुझे सिन्धु नदी के उसी शिलाखण्ड पर विराम मिलता है। फिर रात बिस्तर पर लेटते ही उन्हीं विचारों में खोया रहा- आज मुझे अपने वचपन की याद आ रही है। मैं भवभूति के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध होता जारहा हूँ। मेरे बाबाजी भटट गोपाल इसी तरह सम्पूर्ण विदर्भ प्रान्त में अपनी विद्वता के लिये जाने जाते थे। मैं अपनी जन्मभूमि में श्रीकण्ठ के नाम से चर्चित होता जा रहा था। मेरे बाबाजी ने शायद मेरे सुरीले स्वर को पहचान कर मेरा नाम श्रीकण्ठ रखा था। मेरे