राम रचि राखा - 4 - 3

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राम रचि राखा मरना मत, मेरे प्यार ! (3) लगभग छः बजने वाला था जब अविनाश का फ़ोन आया। मैं ऑफिस में था। प्रिया को गए लगभग दो सप्ताह हो चुके थे। "कहाँ हैं जीजा जी… ऑफिस में?" "हाँ ऑफिस में ही हूँ...और बताओ सब ठीक ?" "हाँ बिलकुल ठीक है...बस आपके शहर में आया था तो सोचा कि आपके दर्शन भी करता चलूँ। " "अरे...! कब आए ?" "आया तो दोपहर में ही था। पी डब्लू डी की ऑफिस में कुछ काम था। अभी फ्री हुआ। आपको ऑफिस से निकलने में अभी कितना समय लगेगा?" "तुम ऐसा करो, फ्लैट पर पहुँचो। मैं ऑफिस से निकलता