परम्परागत अपने इंटर कॉलेज की साथिन अध्यापिकाओं के साथ स्टाफ़-रूम में बैठी मैं समोसे खाने जा ही रही थी कि एक नवयुवती अन्दर आयी| उसकी आयु चौबीस और अट्ठाइस के बीच कुछ भी हो सकती थी| उसका कद मंझला था और रंग सांवला| शक्ल बहुत साधारण थी मगर उसने साड़ी बहुत सुन्दर व कीमती पहन रखी थी| कम-अज़-कम दो अढ़ाई हज़ार की ज़रूर रही होगी| हम सभी अध्यापिकाएँ समोसे छोड़ कर उसकी साड़ी की ओर देखने लगीं| “एक्सक्यूज़ मी”, वह मिसिज़ दत्ता के पास रुक गयी, “क्या कान्ता भारद्वाज यहाँ मिलेंगी?” “हाँ बताइए,” मैं चौंक कर उठ खड़ी हुई, “मैं