उपन्यास के बारे में “छूना है आसमान“, बाल उपन्यास कल्पना कम, हकीकत अधिक है। चेतना से मेरा परिचय किसी और नाम से हुआ था। चेतना उम्र में छोटी जरूर थी, लेकिन उसकी समझ, उसकी बातें और उसकी सोच बड़ों से कम नहीं थी। चेतना ने अपने दर्द, अपनी अकुलाहट को जिस तरह मुझसे साझा किया, उसने मेरे अन्तस को झझकोर दिया। यकीन नहीं हो रहा था कि एक माँ, जिसे पे्रम, स्नेह और ममता की पराकाश्ठा कहा जाता है, वह अपनी बच्ची के साथ दुव्र्यवहार भी कर सकती है। खैर! चेतना के मन को मैंने टटोला, तो मालूम हुआ, वह