राम रचि राखा - 4 - 2

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राम रचि राखा मरना मत, मेरे प्यार ! (2) अच्छा हो या बुरा, समय तो बीतता ही रहता है। देखते ही देखते तीन साल बीत गए। जैसे-जैसे समय समय बीतता गया मेरे और प्रिया के संबंधों की मिठास कड़वाहट में बदलती गई। एक तरफ जहाँ प्रिया को समझ पाना मेरे लिए दिनों दिन और मुश्किल होता जा रहा था वहीं प्रिया के लिए मेरा व्यवहार उत्तरोत्तर असहनीय होता जा रहा था। पहले तो सुबह-शाम ताने दिया करती थी। बाद में चुप्पी साध ली। जो कि मुझे बहुत खलती थी। उस दिन जब सुबह उठा तब प्रिया और वर्तिका दोनों सो रही थीं, जो कि